Sunday, 26 November 2017

साधो, देखो जग बौराना

साधो, देखो जग बौराना ।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।

बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ।

कबीर की लिखी हुई पंक्तियाँ हैं ये। कौन हैं कबीर और ये क्या कह रहे हैं : साधो, देखो जग बौराना। अरे कितनी आसानी से इन्होने सारे जग को बौराया हुआ कह दिया। बौराने से अर्थ है पगला गया है। कबीर कहते हैं सारा जग पगला है। आँखें खोल के देखो, थोड़ा इस समाज से अलग हो कर देखो, सारा समाज पगला गया है। लोग कहते हैं जब सब पागल लगते हैं तो आदमी खुद ही पागल होने लगता है। और कबीर कह भी रहे हैं साधो जग बौराना। क्या इसका अर्थ है कबीर पागल हो रहे हैं? हाँ! ये जो नया समाज तैयार हो रहा है, उसके लिए तो कबीर पागल ही हो रहा है। कबीर एक जुलाहा, एक अक्षर भी जिसने कभी स्कूल जा के सीखा नहीं, जिसने जा के मास्टर के पैर नहीं दबाए, जिसने कोई एग्जाम नहीं दिए, कोई बृहत् संहिता, वेद, पुराण नहीं पढ़े, जिसने कुरआन का रट्टा नहीं लगाया, विज्ञान में जिसकी तनिक भी रूचि नहीं, गणित तो जानते ही नहीं है क्या, वह कह रहे हैं की साधो जग बौराना। जरूर कुछ गड़बड़ है। फिर कबीर इस कविता में पीरों और औलियों और पंडितो को कह रहे हैं, बहुत देखे ऐसे! खाली किताबे पढ़ी है, कि "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोई।" मजाक उड़ा रहे हैं कबीर इनका। ये किताबें पढ़ने वाले कोई मर्म नहीं जानते। खाली लिखा हुआ दोहरा रहे हैं, बरसों से। सही और गलत से किसी को सरोकार नहीं। यहाँ बस पोथियाँ हैं, उन्हें दोहराने वाले हैं,आँख बंद कर के उन्हें अपनाने वाले लोग है। लेकिन मर्म कोउ न जाना। किसी से कह दो, मात्र कह दो की हिन्दू धर्म ख़राब कि, तुरत उठे और मारन धावे। ये भी न पूछे की आखिर क्यों। "साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।" सच कहा की मारने उठे और इस झूठे जग पर और उसके स्वांगों पर बहुत भरोसा है। पक्का भरोसा है और इसके लिए शान है मिट जाने में। सारा संसार इसी बात पर आज युद्ध की कगार पे है। आप देखें मूल रूप से इस धर्म के लिए ही हर जगह लड़ाई है। कि हमारा धर्म ऊँचा, कि हमारा खुदा ऊँचा, कि हमारा अल्लाह ऊँचा, कि हमारा राम ऊँचा। "हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।" सारा संसार इसी लड़ाई से जूझ रहा है। कि "आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।"
कबीर की व्याख्या सभी वेदों कुरानों से बहुत ऊँची है। क्योंकि वे वेदों और कुरआन के बारे में नहीं अपितु उनके मर्म के बारे में कह रहे है। उनके शिष्यों को कोई किताब नहीं रटनी, कोई आवश्यकता नहीं है। वे घुमा फिर के बात नहीं कर रहे। कम पढ़े लिखे हैं कबीर, उन्हें किताबे लिखने का ज्ञान नहीं है। वे सीधा मूल रूप में जो उन्होंने समझा है बता रहे हैं। और उनकी पारखी आँखें है। उनकी आँखों पर किसी भी ज्ञान का पर्दा नहीं है। वो इस हिन्दू और मुसलमान के रंग में नहीं रंगे हैं। वो इनसे ऊपर उठ कर देख सकने में सक्षम हैं। और वो उन नजरों से देख कर कह रहे हैं : "बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना" कि बहुत मिले हैं ऐसे नेमि धर्मी, सुबह उठ कर नहाने वाले, फिर मंदिर जाने वाले। हमारे विश्वविद्यालय में एक दोस्त था हमारा, सुबह उठते ही नहाना, यहाँ तक की दिन में यदि पखाने चला गया तो फिर नाहता था। पर यदि दिनचर्या पूछी जाए तो दिन भर सिर्फ थोथी राजनीती। तो कबीर कहते हैं, बहुत मिले मोहि नेमि धर्मी, और "आतम छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना" आत्मा को छोड़ कर सिर्फ पाषाण की पूजा करते हैं, कैसा थोथा ज्ञान है इनका। इनको मनुष्य में मौजूद आत्मा नहीं दिखती, इनको किसी प्राणी में प्राण नहीं दिखते। शिव के लिंग पर हर सोमवार दूध चढ़ाएंगे, और कोई भिक्षा मांगने इनके द्वार पर आ जाए तो दुत्कारेंगे, "तिनका थोथा ज्ञाना"। इनके द्वार से किसी को कुछ न मिल सकेगा। क्योंकि ये खुद भिखारी हैं। ये धनी हैं परन्तु नियति से भिखारी हैं। इन्होने ये भगवान् भगवान् की रट लगाई ही इसलिए है कि पहला इन्हें मांगने के लिए एक अक्षय पात्र चाहिए। वह संसार, सत असत के बारे में जानने को इक्षुक नहीं हैं। और दूसरा ये अहंकार है कि हमारी संस्कृति हमारा भगवान्, हम सबसे ऊँचे। कबीर कहते हैं : "आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना" कि आसान लगा के, मौन हो कर बैठे हैं, पर मन में बहुत गुमाना, मन में बहुत गुमान है। कबीर ने साक्षात् रूप से अहंकार को सबके सामने रख दिया है। अहंकार क्या है? अहंकार है की मैं कुछ हूँ। मौन हो कर बैठे हैं। लोगों को बता रहे हैं की देखो मुझे देखो, मैंने मौन लिया है। आओ पूजो मुझे, मेरी पूजा करो। यही तो सामान्य जीवन में भी होता है। आपने पीएचडी कर ली है, अब थोड़ा तन के चलोगे। पीएचडी आपने की है और चाहते हैं की सारा समाज आप के आगे झुके। यही है अहंकार। यही बस जता रहे हैं कबीर कि एक पढ़ा लिखा आदमी कैसे अपने आप को एक मजदूर से अलग समझता है। दिन भर पूजा कर रहा है पंडित, पर मजदूर आ जाए तो उसके साथ अलग व्यवहार, सेठ आ जाए तो अलग। और सवाल सिर्फ पंडितों का नहीं, किसी भी धर्म में देखिये, आपको भेद मिल जाएगा। और कबीर कहते हैं : "पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना", कि पीपल और पत्थर को पूजने लगे, ढोंग करने लगे पर तीर्थ और व्रत भूल गए।  यहाँ तीरथ बरत को पाखंड समझने की गलती मत करना।
तीरथ के विषय में कबीर ने कहा है : "तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चारि" तीरथ को ये मत समझ लेना की जो तीरथ में मूर्तियां हैं उनको पूज कर चले आना। तीरथ से जो साध संगती मिलती है उसकी महिमा कबीर बताना चाह रहे हैं। माला पहिने, पंडितों  के लिए कह रहे हैं की खाली माला पहन लेने से और मौलवियों को कहते हैं की खाली टोपी पहन लेने से कोई व्यक्तित्व नहीं बनता। अपनी किसी को खबर नहीं है। अपने अंतरात्मा की, अपने विचारों की, किसी को भी कोई खबर नहीं है। कितना हास्यास्पद है, मंदिर में घंटे बजा के कीर्तन किया जा रहा है, पर अपनी आत्मा क्या उस कीर्तन में कहे शब्दों के साथ सहमत है ये खबर किसी को नहीं। यहाँ कितने ही लोग हैं, कितने धर्मगुरु जो मन्त्र दे रहे हैं, घरों में जा जा कर। कितने ही पीर-औलिया हैं जो कुरआन और अन्य किताबें पढ़ कर बैठे हैं और मृत्यु और अन्य विषयों पर माया के प्रभाव में आ कर ज्ञान  देते हैं। उनके लिए कबीर कहते हैं गुरुवा सहित शिष्य सब बूढ़े, की गुरु के साथ साथ उनके शिष्य भी सब बूढ़े हो चुके हैं। अब उनमें वह जवानी नहीं कि स्वयं अपनी अंतरात्मा में परमात्मा की तलाश कर सकें। वह एक सबल कार्य जो की एक हिम्मती व्यक्ति ही कर सकता है। परमात्मा को ढूंढना इतना आसान नहीं। उलटी राह है, सबके विपरीत चलना पड़ेगा। वह धारणाएँ जो तुमने परमात्मा के प्रति बना राखी हैं, मिटाना पड़ेगा, तब कहीं परमात्मा की राह दिख सकती है। वह जो इतनी मान्यताओं और धारणाओं की रंग बिरंगी पट्टी, वो सफ़ेद, वो हरी और केसरिया पट्टी उतारनी पड़ेगी, तब वह जो शाश्वत है अपनी राह से तुम्हारा परिचय करवाएगा। तो सोचते हो वह आसान काम है। वह एक जवान का काम है, जिसे अपने ऊपर भरोसा है, और जो अपने विवेक के बल पर खड़ा समाज में कह सकता है की तुम गलत हो। तो कबीर कहते हैं : गुरुवा सहित शिष्य सब बूढ़े, अंतकाल पछिताना। और ऐसे लोगों के लिए अंतकाल में पछताने के सिवा कोई मार्ग नहीं है। हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, वो जो दया है और सद्भावना किसी के प्रति वह दोनों में समाप्त हो चुकी है। वह करे जिबह, वो झटका मारे, कि एक जिबह (हलाल ) कर रहा है, और एक झटका मार रहा है, बस फर्क उनके तरीकों में है, पर काम दोनों एक सामान ही कर रहे हैं। तो कबीर कहते हैं : या विधि हँसत चालत हैं, हमको आप कहावै स्याना, कि और ये लोग हम पर हँसते हुए चलते हैं, ये लोग अपनी ओछी धार्मिकता का गुमान करते हुए चलते हैं, और हम पर हँसते हैं। ये दोनों ही जो परमात्मा के दिए इस उज्जवल जीवन का मजाक बनाते चलते हैं, वह अन्य लोगों, वह जो कबीर जैसे हो गए, नानक जैसे हो गए, मसीह जैसे हो गए, उन पर हँसते हुए चलते हैं। और अंत में कबीर कहते हैं : सुनो भाई साधो इनमे कौन दीवाना, की इन दोनों कौमों में कौन दीवाना। कौन है वह जो अन्तःस्थल से पवित्र है। कौन है जो बस खुद को उस पर अर्पण कर चुका है। तो कबीर हंस रहे हैं वह व्यंग कर रहे है, इस समाज पर, उसकी दोगली नीतियों पर, उसकी मान्यताओं पर। कि! "कबीरा खड़ा बाजार में लिया लुकाठी हाँथ, जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ।" 

धन्यवाद !

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Vigilant India, Prosperous India

  The prosperity of a country, in my opinion, is not linked to a few people who are earning billions and adding to per capita income which i...