हर साल हम दशहरे में अधर्म पर धर्म की जीत दिखाते हैं, हर साल रावण जलाते हैं, हर साल हम अधर्म का विनाश करते हैं राम के उस बाण से, लगभग हर साल हम ये रामलीला का स्वांग रचते हैं। पर हर साल की तरह ये रावण इस साल भी अपना सर उसी तरह उपर कर के खड़ा है। इस साल भी रावण हमारी प्रिय एवं माता स्वरूप सीता को हरने में सफल रहा। इस साल भी रावण राम को छलने में कामयाब रहा। इस साल भी राम का चित्त नहीं जागा, वह सीता का अपहरण नहीं रोक सके।
हर साल दशहरे के दस दिनों में बुराई का परचम लहराता है और अंत में तथाकथित तौर पर रावण का अंत बुराई का अंत समझ लिया जाता है। यह कोई अंत नहीं है। इस बुराई का कोई अंत नहीं है क्योंकि जब तक राम सोता रहेगा, तब तक कोई भी रावण छलने में कामयाब हो सकता है। मैंने एक कहावत सुनी है, एक झेन कहावत है कि हमारे मन के भीतर दो भेड़िये हैं। एक सफेद है और एक काला। हालांकि यह रंगभेद है, परंतु इस बात को ज्यादा तूल न देते हुए हम इस कहावत पर आते हैं। तो कहावत कहती है कि सफेद रंग सत्य का प्रतीक है और काला रंग बुराई का। ये दोनों भेड़िये आपस में लड़ रहे हैं और जीत उसी की होगी जिसे आप ज्यादा खिलाओगे। इस कहावत को एक और रूप में देखा जा सकता है। हमारे मन के भीतर राम और रावण दोनों हैं और जीतेगा वही जिसे आप प्रश्रय दोगे। हमारे भीतर का राम लगभग हर समय सो रहा है। और हम इस प्रतीकात्मक राम को जगाने की चेष्टा वर्षाें से किए जा रहे हैं।
हर साल दशहरे के दस दिनों में बुराई का परचम लहराता है और अंत में तथाकथित तौर पर रावण का अंत बुराई का अंत समझ लिया जाता है। यह कोई अंत नहीं है। इस बुराई का कोई अंत नहीं है क्योंकि जब तक राम सोता रहेगा, तब तक कोई भी रावण छलने में कामयाब हो सकता है। मैंने एक कहावत सुनी है, एक झेन कहावत है कि हमारे मन के भीतर दो भेड़िये हैं। एक सफेद है और एक काला। हालांकि यह रंगभेद है, परंतु इस बात को ज्यादा तूल न देते हुए हम इस कहावत पर आते हैं। तो कहावत कहती है कि सफेद रंग सत्य का प्रतीक है और काला रंग बुराई का। ये दोनों भेड़िये आपस में लड़ रहे हैं और जीत उसी की होगी जिसे आप ज्यादा खिलाओगे। इस कहावत को एक और रूप में देखा जा सकता है। हमारे मन के भीतर राम और रावण दोनों हैं और जीतेगा वही जिसे आप प्रश्रय दोगे। हमारे भीतर का राम लगभग हर समय सो रहा है। और हम इस प्रतीकात्मक राम को जगाने की चेष्टा वर्षाें से किए जा रहे हैं।
राम को जगाने की चेष्टा स्वयं अपने आप में रावण से लड़ने के बराबर है। आप एक दफा उस रावण से तो जीत सकते हैं जिसे आप बाहर की ओर देखते हैं। जिसका स्पर्श आप महसूस कर सकते हैं। वह जो आपकी आंखों के सामने है रावण उसे जलाना, मार डालना बहुत आसान है। पर मन के रावण को जलाना, उसको मारना यह एक असम्भव कार्य मालूम पड़ता है। निष्कृय जीवन जीते जीते यह रावण हमारे राम से इतना बड़ा हो गया है कि राम की कल्पना भी करना उसके सामने मूर्खता मालूम पड़ती है। आपने देखा होगा अपने मन को कभी यदि तलाशा हो तो, किसी राम की कोई खबर मिलती है। नहीं, मिलती है खबर तो सिर्फ एक रावण की चाहे वह लालसा का रावण हो, या लालच का या वासना का, अगर कुछ भी जीवित शेष है भीतर तो वह रावण है। राम को तो तुम अभी कुम्भकरण की नींद सुला रहे हो। तुम मन से इतना कुठित हो चुके हो क्योंकि रावण सिर्फ अपना भला ही नहीं करता यह आपको भी नुकसान पहुंचाता है। आपका क्रोध आपकी ही विनाशलीला रचता है। तुमने कभी सोचा है हर साल रावण का आकार बढ़ता जाता है। खबरों में आता है, फलां जगह रावण 110 फुट का जलाया, फलां जगह 120 फुट का। ये रावण का आकार दिन दिन बढ़ता जा रहा है। और इसकी एकमात्र वजह है कि आपके भीतर का राम अभी सो रहा है। यदि राम कभी भी तुम्हारे भीतर जाग जाए, और कई लोगों के मन में जागा भी है, तो तुम इस खेल से मुक्त हो जाओ। तब शायद समझ आए कि यह रावण सिर्फ एक दिखावा मात्र है और इस रावण को मारने से कुछ भी नहीं मरना ठीक एक साल बाद यह पुनः खड़ा होगा यहीं, तुम्हारी आशाओं के विपरीत और उंचा।
वह रावण जो तुम जलाते हो वह इतना बुरा नहीं है जितना तुमने उसे बना दिया है। आखिर उसने सीता का अपहरण ही तो किया, और उसे सिर्फ अशोक वाटिका में ही रखा, हाथ तक नहीं लगाया उसको। भारतीय दंड विधान के तहत रावण के उपर सिर्फ अपहरण का दोष ही लगाया जा सकता है। और इस दोष की सजा यह नहीं कि उसे मौत दे दी जाए। असली रावण तो वह है जो, दबी हुई आकांक्षाओं को छुपाकर मुखौटे लगाकर एक दूसरे से मिलता है। वह रावण जो मौकापरस्त है। वह जो मौका लगने पर किसी भी सीता को आंखों में हरकर उसके साथ बलात्कार कर सकता है। वह रावण जो राह जाती सीता का अपमान करने में दम भर भी नहीं चूकता। वह रावण जो सुःख का इतना दीवाना है कि वह उस सुःख के लिए किसी की गर्दन काटने में जरा भी समय नहीं लगाता। तुम सोचते हो कि इस रावण के रहते वह बौना रावण जिसकी प्रतिमा तुमने इतनी उंची उठा रखी है कभी मर सकेगा। कभी उस रावण का अंत हो सकेगा जब उसका अंश किसी ना किसी रूप में हम सभी में विद्यमान है। वह जो भीतर विद्यमान रावण है उसके अंत के लिए हे राम तुम कब जागोगे?
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