Saturday, 26 September 2015

Pyar ka Bandhan

 “कहीं हल्की सरसराहट जो कानों को छू जाती है लगता है तुम आ गईं। एक झोंका हवा का जब वो खुशबू लिए फिरता है मेरे दिल को उकसा देता है। भटकना यूं तो तकदीर की एक दुःख भरी कहानी है पर इस भटकाव में तुम्हारा साथ हो तो बात और है।” घुटनों पर बैठे अजय ने अंजली से ये बातें कहीं तो अंजली रो पड़ी।
उसने कभी नहीं सोचा था कि वो इंसान जिसे वो हमेशा अपना सबसे अच्छा दोस्त समझती रही आज उससे ये बातें कहेगा। वो चुप खड़ी रही।
पिछले कुछ दिनों से अजय को लगने लगा था कि जिंदगी में अगर किसी साथ को पाना ही है तो वो अंजली से बेहतर कोई नहीं हो सकता था। वो दोनों एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। सभी सुख दुख साझा करते। न जाने कितनी बार दोनों ने एक दूसरे के कंधे को अपने दुःखों का सहारा बनाया था। जिंदगी जैसे जैसे आगे बढ़ती है नई राहों पर चलती जाती है। बदलाव तो सृष्टि का नीयम है। इसी बदलाव की हवा में अजय का मन भी उड़ने लगा था।
स्वभाव से वह बहुत ही शर्मीला और शांत था। हमेशा वह पढ़ाई या फिर ज्ञान की बातों में लगा रहता था। उसे जैसे दूसरी बातों में कोई रस ही नहीं मिलता था। चूंकि वह बिल्कुल भी हंसमुख नहीं था अन्य बच्चे उससे कतराते या उसका मजाक बनाते थे। कोई उस पर फब्तियां कसता तो कोई उसकी नकल उतारता। पर वह इन सब बातों से कभी परेशान नहीं होता था। वह अकेला था पर इस भंवर में भी एक दोस्त की तरह उसका हाथ थामें अन्जली खड़ी थी। अंजली हमेशा उसका साथ देती थी। वह उसके साथ तो ना पढ़ती थी पर जब भी उन्हें समय मिलता वो एक दूसरे के पास बैठकर मन बहला लेते थे। अजय को ये प्रतीत होता था जैसे वो खारे पानी के समुद्र में खड़ा हो चाहे कितनी ही प्यास क्यू ंना लगे वह उसे पी नहीं सकता पर अंजली का साथ उसके लिए नदी के समान था।
अंजली भी बहुत भीरु लड़की थी। वह ज्यादातर तो शांत ही रहती थी। पर उसे कभी कभी गुस्सा भी आ जाता था। यूं तो वो भी बहुत ही शर्मीली और स्वयं से मतलब रखने वाली लड़की थी। रंग गोरा था, सुंदर आंखें थी। वह सदा हंसती मुस्कुराती रहती थी। अपनी परेशानियां अपने अंदर ही रखती थी। स्वभाव से वह बहुत ही शील और मीठी बातें करने वाली थी। अजय के साथ उसके बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध थे। वह उसका सबसे अच्छा दोस्त था। अजय और अंजली दोनों को ही समाज सेवा का बहुत शौक था। वह एसा कोई मौका न खोते जिसमें दूसरों की मदद की जा सके। दोनों ही पढ़ाई मंे काफी तेज थे।
अजय के मन की इन बातों से वह काफी अन्जान थी, पर आज उसके खुल कर सामने आ जाने से वो काफी अचम्भित हुई। विश्वविद्यालय के आम माहौल में लड़के और लड़कियों के बीच आकर्षण एक आम बात थी पर यह बात अजय पर भी लागू होती थी इसका उसे पता ना था। उसके लिए इन बंधनों में लोग सिर्फ दिखावा करने के लिए ही बंधते थे। कोई भी इन्हें निभाने की हिम्मत नहीं रखता था। और ये काफी हद तक सत्य भी था। ज्यादातर लड़के लड़कियों को पटाने के लिए इधर-उधर चक्कर मारा करते थे। चारों तरफ का एसा माहौल उसे हमेशा इन सब चीजों से दूर रखता था। उसकी मानसिकता का दूसरा पहलू भी था। वह इन बंधनों में बंधना नहीं चाहती थी। उसने देखा था कि कैसे एक दूसरे से संबंध रखने वाले लोग एक दूसरे पर ही शक करते थे। इन सब बातों के कारण प्यार-व्यार की बातें उसे मिथ्या प्रतीत होती थीं। पर आज अजय के मुख से वही बातें सुन क रवह हतप्रभ रह गई थी।
अजय भी हमेशा इन बातों के विरोध में ही रहता था। उसके विचार में झूठ बोलना बहुत ही घृणात्मक कार्य था और जो लोग इस बंधन में बंधते थे वो हमेशा एक दूसरे से झूठ बोलते थे। दार्शनिक होने के कारण वह प्यार का महत्व तो समझता था पर वह प्यार नहीं जिसका दिखावा संसार करता है। उसकी नजरों में प्यार वह अलौकिक चीज थी जिसे पाने के बाद इन्सान को और कुछ पाने की आशा नहीं रह जाती। उसके हिसाब से प्यार से बढ़कर और कोई दुआ न थी। प्यार भगवान से मिलन का एकमात्र साधन था। पवित्र, निर्मल, बिना किसी वासना के। प्यार का आर्थ ही त्याग में है। वह जिसे सभी पाने की, अधिकार करने की इच्छा समाप्त हो गई हो सच्चा प्यार कर सकता था। वह इन सब आदर्शों को मानता था और उन का अनुसरण भी किया करता था। उसे प्राणी मात्र से इतना लगाव था कि वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे खड़ा रहता था। उसके अंदर लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। अंजली को देखकर, उसके साथ रहकर उसे उसी मानसिक शांति की अनुभूति हुआ करती थी जिसकी वह कल्पना किया करता था। यू ंतो भले ह ीवह एक दूसरे से एक शब्द भी ना कहें पर साथ होने मात्र से उसे काफी हल्का प्रतीत होता था।
उसने अंजली से जब ये बातें कहीं तो उसकी आंखों में वही चमक थी। चूंकि वह विचारों से गलत न था उसके अन्दर एक स्थायित्व आ गया था। अन्जली से वह एक जवाब की आशा रखता था क्यूंकि वह जानता था कि वही उसके मन की बात को भली भांति समझ सकती है। अन्जली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा ‘‘तुम खड़े हो सकते हो और क्या हम चलकर कहीं बैठकर बात करें?’’ अजय ने सिर हिलाकर हामी भरी और दोनों पास की कैन्टीन में जाकर बैठे। दोनों ही शांत बैठे थे। शुरुआत करते हुए अंजली ने कहा - ‘‘ क्या था ये?’’
‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं अन्जली। तुम्हारे पास आते ही मेरे विचार आजाद हो जाते हैं। मन एक उंची उड़ान भरने लगता है।’’ सच्चे भाव से अजय ने कहा।
अन्जली समझदार लड़की थी। वह इस बात पर भड़ककर अपनी मित्रता को खत्म नहीं करना चाहती थी। साथ ही उसे अजय पर भरोसा था कि वह गलत फैसले नहीं लेता, तो वह उसका पक्ष भी सुनना चाहती थी। बोली - ‘‘वह तो मैं जानती हूं। तुम सबसे प्यार करते हो। किसी से नफरत करते हो ये बताते तो शायद विस्मय होता।’’
‘‘क्या तुम मेरे साथ अपना जीवन निर्वाह करना चाहोगी।’’ अजय ने दबी आवाज में पूछा।
‘‘क्या मैं जब शारीरिक रूप से तुम्हारे साथ नहीं होती तब तुम मुझे खुद से अलग मानते हो।’’
‘‘नहीं’’
‘‘तो तुम्हारे इस प्रश्न का क्या औचित्य है। क्या देह का साथ होना ही प्रेम को दर्शाना है? क्या मानसिक तौर पर तुम्हारे साथ होना कुछ नहीं।’’
‘‘नहीं प्रिये! ऐसा नहीं है तुम तो सदैव मेरे मन में वास करती हो। एक पल भी जुदा नहीं हो। पर मैं जो आजादी और उन्मुक्तता तुम्हारे साथ होने पर महसूस करता हूं वह कहीं और सोचनीय नहीं है।’’
‘‘क्या आज तुम्हारा प्रेम इतना संकीर्ण हो गया कि तुम इसकी एक सीमा बांधना चाहते हो। तुम अपने प्यार का एक केन्द्र बनाना चाहते हो जिसकी धुरी पर तुम अपना ये सारा जीवन न्यौछावर कर दो। वह महान जीवन जो एक महान व्यक्तित्व के रूप में उभर कर मानव इतिहास को सुनहरा कर देता उसे एक स्त्री की ममता का चोगा पहनाकर कलंकित करना चाहते हो। तुम्हारी त्याग परायणता तुम्हारी भक्ति सिर्फ मुझ तक सीमित हो जाए यह मुझे बरदाश्त नहीं। मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं एक दोस्त की तरह एक जीवन साथी की तरह। एसा नहीं कि मुझे तुमसे प्यार नहीं पर मैं उस प्यार पर एकाधिपत्य नहीं जमाना चाहती जिसे पूरी दुनिया में बंट जाना चाहिए। जिसका जिनका जिनका मानव जाति के कल्याण में खर्च हो जाना चाहिध्। ऐसे प्यार को पा कर मैं तो सुखी हो जाउंगी पर उन करोणों लोगों की वेदना का क्या जवाद दूंगी। अजय मैं तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलूंगी ताकि तुम्हारे जीवन के साथ मेरा जीवन भी सफल हो जाए। अगर सूरज की तरह चमकना है तो उसकी तरह जलना भी होगा तभी मानव कल्याण हो सकेगा और प्यार का सही अर्थ साबित किया जा सकेगा। तुम निश्चिंत रहो ये प्रेम एक अमर बंधन है। शादी तो दिखावा मात्र है जिसमें सांसारिक रूप-रेखा में वासना की तृप्ति का अधिकार दिया जाता है। एसे दिखावे की तुम्हें कोई आवश्यकता नहीं। मैं हमेशा ये प्रयास करूंगी कि तुम उस नेक राह पर चलते रहो जिस पर तुम अग्रसर हो। और यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।’’
अजय खामोश इन बातों को सुन रहा था और अंजली जैसा साथी पा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। अपने जीवन में वह इन उंचाइयों को न छू पाया था जिनका दर्शन आज उसे अंजली की बातों से हो रहा था। प्यार के जो मायने उसने बीज के तौर पर बोए थे आज वो फसल के रूप में उसको मिल गई थी।

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