Wednesday, 18 October 2017

दीपावली, पटाखे और कम्बख्त सुप्रीम कोर्ट

वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए 9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि यह काम प्रशासन का है कि वह यह देखें कि क्या चीजें हमारे वातावरण को प्रदूषित कर रही हैं और किन चीजों पर प्रतिबंध लगा कर हम बड़े खतरों से आसानी से बच सकते हैं। परंतु आप सभी इस बात से परिचित होंगे कि हमारा प्रशासन अभी हिन्दू मुसलमान, गरीब अमीर के मुद्दे में ज्यादा व्यस्त है। और ये मुद्दे अपने आप में इतने ज्वलंतशील हैं कि इन्हीं से अपनी चिलम सुलगाकर अधिकारी लोग अपना अधिकतर वक्त गुजारते हैं।
प्रशासन प्रदूषण और इससे अन्य व्यक्तियों को होने वाले नुकसान के बारे में सोच कर और बोझ अपने सिर नहीं लेना चाहता। भई प्रशासन के कर्मचारियों ने सिगरेट पीने से पहले अपने बच्चों के विषय तक में नहीं सोचा और आप उम्मीद करते हैं कि वो दूसरे बच्चों के परिवार और बच्चों के बारे में सोचेंगे, अबे पागल समझे हो क्या उन्हें। इतनी टेंशन दोगे। अच्छा चलो छोड़ो, प्रशासन को ही काहें दोष दें। प्रशासन भी लोगों से ही मिल कर बना है। प्रशासन में भी हिन्दू और मुसलमान हैं। जाहिर है कि जहां हिन्दू मुसलमान हैं, वहां ऐसे निर्णय भी धार्मिक भावनाओं को साथ रख कर ही देखे जाएंगे। अब देखिए ना कि व्हाट्सऐप पर अचानक से लोगों को लगने लगा कि खाली दीपावली पर ही पटाखे क्यों प्रतिबंधित किए गए। अन्य अवसरों जैसे कि ईसाईयों के नए साल के उपलक्ष्य में, या पाकिस्तान से मैच जीतने के उपलक्ष्य में, या किसी अन्य धर्म के किसी अवसर पर भी तो पटाखे फोड़े जाते हैं। उन्हें भी प्रतिबंधित करो। ऐसा लगता है, अचानक से भारत को हिंदू देश कहने वाले लोग भूल जाते हैं कि भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है और वह दीपावली का त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं। ध्यान दें धूम-धाम पटाखों की आवाजें हैं, बाकी तो दीपावली भी उन्हीं रावणों के साए में मनती है।
वैसे तो जहां तक हमें पता था, दीपावली दीयों का त्यौहार हुआ करता है। राम असत्य पर सत्य की विजय दिलाकर वापस अयोध्या लौटे थे। सारा नगर मानसिक दीप्ती से उजागर था सो उन्होंने दीये जलाए। हर कोने में दीया लगा दिया। सब कुछ प्रकाशवान कर दिया। जिनका मन सत्य से अवलोकित हो वह सारे समाज को दीया ही दिखाएंगे। सारे समाज को रोशनी ही बांटेंगे, और कुछ बांटने को उनके पास शेष नहीं है। पूरा लंका से अयोध्या तक का मार्ग दीयों की जगमग से प्रदीप्त हो उठा है। सब मनुष्यों के अंदर से अहंकार रूपी रावण मर चुका है, उन्हें सत्य के दर्शन हो चुके हैं और यह दर्शन कराने वाला राम (जीवन और मृत्यु) जिस ओर से भी निकल रहा है, लोग उसे दीया दिखा रहे हैं, उसका मार्ग अवलोकित कर रहे हैं। अब उन्हें इन दोनों (जीवन और मृत्यु) से कोई भय न रहा, वही सत्य की पराकाष्ठा है। और इस पराकाष्ठा पर खड़े लोग शांति को ही प्रश्रय देंगे। परन्तु अभी 20 दिन पहले जिस रावण को मार कर राम लौटा है वह निष्कृय है, वह निष्ठुर है, उसके अंदर ही ज्ञान नहीं है। वह बाहर के रावण को मार आया है। और ध्यान रहे जो बाहर के रावण को मारेगा वह अंततः रावण बन जाएगा। इस राम में कोई प्रकाश नहीं है, इस राम में सिवाय मृत्यु की झलक के और कुछ नहीं। ये राम मन से अभी भी व्यथित है। और इस राम के आगमन से किसी के जीवन में प्रकाश की कोई धारा नहीं बही। कोई शांति पैदा हो ही नहीं सकती इस राम को देख कर। ये सिर्फ दशरथ का पुत्र राम है जो अपनी पत्नी सीता के हरण का बदला लेकर लौटा है। ऐसे व्यक्ति के अंदर अहंकार कूट कूट कर भरा होगा। इस व्यक्ति के लिए पटाखे फूटेंगे। इसी व्यक्ति के लिए फूट सकते हैं। एक व्यक्ति पूरे साम्राज्य को हरा कर लौटा है, पटाखे फूटने ही चाहिएं। अहंकार का प्रदर्शन होना ही चाहिए। यही कारण है कि इस व्यक्ति की पूजा करने वाला समाज आज स्त्री का गला घोंट रहा है। अपने अहंकार से फलित वह पूरे समाज का अंत करने पर उतारू है। नहीं तो दीपावली पर पटाखों की कोई जरूरत नहीं। अब जब अहंकार के प्रदर्शन की बात आती है तो लोग सुप्रीम कोर्ट को क्या बख्श देंगे। फोड़ दिए पटाखें कल सुप्रीम कोर्ट के बाहर। सुप्रीम कोर्ट क्या कर लेगा।
जब तक दीप मन के भीतर न जल जाए, दीपावली का कोई महत्त्व नहीं है। दीपावली सिर्फ दीयों का त्यौहार है, इसे दीयों का त्यौहार रहने दें। कृपया इसे वृद्धों, बच्चों और बीमार लोगों के लिए मुसीबत का सबब मत बनाएं। त्यौहार लोगों के बीच खुशियां ले कर आता है, और वह खुशियां जो दूसरे का गला घोंट कर आती हैं वह आपको भी मृत बनाती हैं।
धन्यवाद

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