Thursday, 26 October 2017

आज नहीं तो कल, परमात्मा मिल ही जाएगा।

आज नहीं तो कल, परमात्मा मिल ही जाएगा। ढूंढने की शक्ति कमजोर न पड़ जाए। तुम कमजोर न पड़ जाना। मैंने एक कहानी सुनी थी। ओशो ने कही है। उन्ही के शब्द इस्तेमाल किये हैं मैंने। यह कहानी एक सूफी फ़कीर की है। एक मस्तमौला व्यक्ति जिसे एक चोर में गुरु मिला। वह गुरु जिसने अपने कृत्यों से परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया। वह जिसने हार के भी परमात्मा को पाने की इच्छा न छोड़ी। आइए पढ़ें ये कहानी :

सूफी फकीर हुआ, जुन्नैद। वह एक रात एक गांव में भटक गया, धर्मशालायें बंद हो गईं। एक आदमी अंधेरे रास्ते में मिला। उसने कहा कि 'मैं फकीर हूं। अब कहां रुकूं, मुझे कुछ पता नहीं; पता-ठिकाना जिसका था, वह मैं खोज रहा हूं लेकिन मिल नहीं रहा, कुछ भूलचूक हो गई। क्या तुम मुझे कुछ सहारा दोगे?' उस आदमी ने कहा कि 'देखिये, मैं एक चोर हूं और मैं अपने काम पर निकला हूं और आप एक फकीर हैं, इसलिए सच बोल देना उचित है। मेरे घर आप रुक सकते हैं, लेकिन वह एक चोर का घर है।'
फकीर थोड़ा डरा। यही जिंदगी की मुसीबत है! यहां चोर ज्यादा मजबूत और फकीर कमजोर है। फकीर थोड़ा डरा। चोर नहीं भयभीत है फकीर को घर में बुलाने से; फकीर भयभीत है चोर के घर में जाने से। लेकिन फिर उसे खयाल भी आ गया, क्योंकि जुन्नैद बड़ा हुशियार आदमी था, उसे ख्याल आ गया कि मैं डर रहा हूं, यह आदमी नहीं डर रहा। यह नहीं घबड़ाता है कि कहीं फकीर, मुझे फकीर न बना ले, तो मैं क्यों घबड़ा रहा हूं कि चोर मुझे चोर न बना ले? जरूर मेरे भीतर कहीं चोर छिपा है, वही भय का कारण है। उसने कहा कि मैं चलता हूं, क्या फर्क पड़ता है? सब घर बराबर हैं और तुमने निमंत्रण दिया प्रेम से, मैं आता हूं। वह चोर के घर रुका, एक महीना रुका।
और बाद में जुन्नैद कहता था कि वह चोर मेरा बड़े से बड़ा गुरु सिद्ध हुआ। वह रोज रात जाता और सुबह के करीब लौटता। और जब वह आता तो मैं दरवाजा खोलता और उससे पूछता कि 'कुछ सफलता मिली?' वह कहता, 'आज तो नहीं मिली, लेकिन कल जरूर मिलेगी।' उसे कभी मैंने निराश नहीं देखा, वह हमेशा आशा से भरा था और कभी उसे मैंने थका हुआ न पाया। हर रात वह उतने ही आनंद से फिर जाता था चोरी के लिए, जैसे कल गया था। सुबह खाली हाथ लौटता। मैं पूछता, वह कहता, 'कोई फिक्र न करें, कल!'
जुन्नैद ने कहा है कि जब मैं परमात्मा को खोजने लगा, तो मेरी हालत उस चोर जैसी हो गई, रोज खोजता और हाथ कुछ न आता, रात-रात भर जागता, प्रार्थना करता, नाम स्मरण करता, कोई स्वाद न आता; कोई अनुभव न मिलता। कई बार मैंने सोचा कि छोड़ो! यह सब बकवास है, यह परमात्मा और यह खोज कुछ भी नहीं है; लौट जाओ संसार में। तभी मुझे उस चोर की याद आती और मैं उसे देखता द्वार पर खड़ा, आशा से भरा और वह कहता, 'आज नहीं, तो कल।' तो मैं उस चोर की ही आवाज के आधार पर आज नहीं--कल, आज नहीं--कल, कोशिश करता रहा। और एक दिन जब परमात्मा मुझे मिल गया, तो मेरा पहला धन्यवाद उस चोर के लिए था, क्योंकि वही मेरा गुरु था।

अगर तुम सीखना जानते हो तो चोर से भी सीख लोगे, और अगर तुम सीखना नहीं जानते तो परमात्मा के पास से भी खाली हाथ लौट जाओगे। यह तुम्हारी सीखने की कला पर निर्भर होता है। और विपरीत में प्रवेश किए बिना कोई नहीं सीखता। यह संसार विद्यालय है। यहां सब गलत हो रहा है, उससे तुम घबड़ाओ मत, उस गलत को समझो। और उस गलत को जैसे-जैसे तुम समझोगे, तुम्हारे भीतर का कांटा अपनी जगह पर लौटने लगेगा। जैसे-जैसे गलत तुम्हें साफ होने लगेगा, वैसे-वैसे सही पर तुम स्थिर होने लगोगे। जिस दिन तुम अहंकार को पूरा पहचान लोगे, उस दिन अचानक पाओगे कि भीतर की ज्योति जल उठी; यह द्वंद्वात्मकता है।
अंधकार को पहचानने से ज्योति जगती है, असत्य को असत्य की तरह जान लेने से सत्य का अनुभव शुरू होता है। जिसने रात को पूरा देख लिया उसकी सुबह करीब आ गई। और जिसने संसार को पूरा अनुभव कर लिया, उसका पूरा स्वाद ले लिया, उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल गये। संसार के अनुभव के बिना मोक्ष के द्वार न खुलेंगे। और अगर तुम कच्चे मोक्ष में प्रवेश भी कर जाओ तो तुम संसार में वापिस लौट जाओगे, क्योंकि तुम पाओगे वहां कुछ भी नहीं। तुम्हारी वासनायें अगर संसार की भर नहीं गई हैं, पूरी नहीं हो गई हैं, उन्हें अगर तुमने सम्यक रूप से जी नहीं लिया है, तो तुम फिर भटक जाओगे।

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